रंग लहू , बारूद अबीर !
हिन्द हिमालय अपनी लकीर !
लहू के सावन सा हम बरसें
अम्न के फागुन को हम तरसें
मौत को भी कायर कर दें
इस हद तक हम वीर
रंग लहू ,बारूद अबीर !
माटी ही चन्दन अपने लिए
सरहद ही मधुबन अपने लिए
हाथों में जागीरे-वतन
खिलौना बना लिया ये शरीर
रंग लहू ,बारूद अबीर !
ममता की नादें एक तरफ
सबकी यादें एक तरफ
लुट जाए सब अपना तो
शाने-वतन के हम अमीर
रंग लहू , बारूद अबीर !!
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