Thursday, July 7, 2011

रंग लहू ,बारूद अबीर..!!


(भारतीय जवानों को समर्पित )



















रंग  लहू , बारूद  अबीर !
हिन्द हिमालय अपनी लकीर ! 

लहू  के  सावन  सा  हम बरसें
अम्न के फागुन को हम तरसें
मौत को भी कायर कर दें
इस हद  तक हम वीर
रंग लहू ,बारूद अबीर !

माटी   ही  चन्दन  अपने लिए
सरहद ही मधुबन अपने लिए
हाथों में जागीरे-वतन
खिलौना बना लिया ये शरीर
रंग लहू ,बारूद अबीर !

ममता की नादें एक तरफ
सबकी   यादें   एक  तरफ
लुट जाए सब अपना तो
शाने-वतन के हम अमीर
रंग लहू , बारूद अबीर !!

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Monday, June 20, 2011

तो हम भी बाज़ हो सकते हैं...!!






















चप्पलें टूट जाती हैं हमारी
तुम्हारी बनायीं  सड़कों पे
और तुम्हे कारें बदलने से फुरसत नही,
शाम के खाने का पता नही
मुल्क के करोड़ों लोग हैं ऐसे
और तुमने अपनी पुस्तों तक के लिए
अय्यासियों के बार में
हर शाम रिजर्व कर ली,
बेरोजगारों की बेरोजगारी न जाय
शराबियों की शराब न जाय
डूबे रहें सब अपने बदहाल में
किसी को फुरसत न हो
तुम्हारी असलियत देखने की
अच्छी चाल रची है तुमने,
हम आँवारा परिन्दे
मुहब्बत के दाने
चुगते रहे जमी पर 
मगर हमारे जज्बात,
हमारी ख्वाइशों को डसने वाले
ऐ नेताओं
गर तुम साँप हो सकते हो
तो
हम भी बाज़ हो सकते हैं  !!
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